*संतवाणी*
*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानन्दजी महाराज*
_(‘सन्त उद्बोधन’ पुस्तकसे)_
*हम करते यह हैं कि अपनी वस्तु-स्थितिपर तो विचार करते नहीं, या तो भूतकी घटनाओंकी स्मृति करते रहते हैं और उन्हींके द्वन्द्वमें फँसकर अपनेको दीन या अभिमानी मानते रहते हैं । अथवा जीवनकी आशाओंके चिन्तनमें फँसकर चिन्तित बने रहते हैं ।*
*अपनी वर्तमान परिस्थितिका सदुपयोग नहीं करते और न ही अपनी वस्तु-स्थितिपर ही विचार करते । इसलिए हमारी उलझनें सुलझ नहीं पातीं । गुरुजनोंसे सुनकर थोड़ी शुभ क्रिया और आंशिक साधन करते हैं, परन्तु जब उनमें शान्ति नहीं मिलती; तो कहते हैं कि हमें कोई अच्छा गुरु नहीं मिला, अथवा हमारा भाग्य अच्छा नहीं है, हमपर भगवान्की कृपा नहीं है, या हमारी परिस्थिति अच्छी नहीं है । इत्यादि-इत्यादि ।*
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