सोच की दिशा का परिणाम
रामलाल जी प्रतिदिन मंदिर में हनुमान चालीसा,आरती पढ़ने जाते थे
उनके पास पुराने वस्त्र, फटे जूते थे। एक दिन एक धनी सेठ पूजा करने आया, उसके पास सोने की करचोटी वाले जूते थे। रामलाल ने पूछा - आप कब-कब पाठ पढ़ते हैं। तो उसने उत्तर दिया- साल में एक बार ही। इस पर रामलाल दुःखी हुए और मन मे बोले हे ईश्वर! रोज पूजा पाठ करने वाले के फटे जूते और साल में जो एक बार पढ़ता है उसे सोना लगे? यह कैसा इंसाफ? वे यह सब सोच ही रहे थे कि एक बिना पैर वाला अपंग घिसटता हुआ आया और पूजा करने लगा। रामलाल का विचार बदल गया। उनने शिकायत के स्थान पर भगवान को धन्यवाद दिया और कहा-मुझे पैर मिले हुए हैं यही क्या कम है?
सम्पन्न से अपनी तुलना करने पर मनुष्य दुःखी होता है किन्तु जब दुखियों से तोलता है तो प्रतीत होता है कि जो मिलता है, वह भी कम नहीं हैं।
सोच तथा दृष्टि की दिशा पर आपका सुख दुख निर्भर करता है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।
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