Saturday, May 30, 2020

सोच की दिशा का परिणाम

सोच की दिशा का परिणाम

रामलाल जी प्रतिदिन मंदिर में हनुमान चालीसा,आरती पढ़ने जाते थे

उनके पास पुराने वस्त्र, फटे जूते थे। एक दिन एक धनी सेठ पूजा करने आया, उसके पास सोने की करचोटी वाले जूते थे। रामलाल ने पूछा - आप कब-कब पाठ पढ़ते हैं। तो उसने उत्तर दिया- साल में एक बार ही। इस पर रामलाल दुःखी हुए और मन मे बोले हे ईश्वर! रोज पूजा पाठ करने वाले के फटे जूते और साल में जो एक बार पढ़ता है उसे सोना लगे? यह कैसा इंसाफ? वे यह सब सोच ही रहे थे कि एक बिना पैर वाला अपंग घिसटता हुआ आया और पूजा करने लगा। रामलाल का विचार बदल गया। उनने शिकायत के स्थान पर भगवान को धन्यवाद दिया और कहा-मुझे पैर मिले हुए हैं यही क्या कम है?
सम्पन्न से अपनी तुलना करने पर मनुष्य दुःखी होता है किन्तु जब दुखियों से तोलता है तो प्रतीत होता है कि जो मिलता है, वह भी कम नहीं हैं।
सोच तथा दृष्टि की दिशा पर आपका सुख दुख निर्भर करता है। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि।

कौन सी शिव प्रतिमा के पूजन का क्या होता हैं फल

कौन सी शिव प्रतिमा के पूजन का क्या होता हैं फल

भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है लेकिन भगवान शिव की मूर्ति पूजन का भी अपना ही एक महत्व है। श्रीलिंग महापुराण में भगवान शिव की विभिन्न मूर्तियों के पूजन के बारे में बताया गया है।

1. कार्तिकेय के साथ भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं। मनुष्य को सुख-सुविधा की सभी वस्तुएं प्राप्त होती हैं, सुख मिलता है।

2. जिस मूर्ति में भगवान शिव एक पैर, चार हाथ और तीन नेत्रों वाले और हाथ में त्रिशूल लिए हुए हों। जिनके उत्तर दिशा की ओर भगवान विष्णु और दक्षिण दिशा की ओर भगवान ब्रह्मा की मूर्ति हो। ऐसी प्रतिमा की पूजा करने से मनुष्य सभी बीमारियों से मुक्त रहता है और उसे अच्छी सेहत मिलती है।

3. भगवान शिव की तीन पैरों, सात हाथों और दो सिरों वाली मूर्ति जिसमें भगवान शिव अग्निस्वरूप में हों, ऐसी मूर्ति की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को अन्न की प्राप्ति होती है।

4. जो मनुष्य माता पार्वती और भगवान शिव की बैल पर बैठी हुई मूर्ति की पूजा करता है, उसकी संतान पाने की इच्छा पूरी होती है।

5. भगवान शिव की अर्द्धनारीश्वर मूर्ति की पूजा करने से अच्छी पत्नी और सुखी वैवाहिक जीवन की प्राप्ति होती है।

6. जो मनुष्य भगवान शिव की उपदेश देने वाली स्थिति में बैठे भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करता है, उसे विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।

7. नन्दी और माता पार्वती के साथ सभी गणों से घिरे हुए भगवान शिव की ऐसी मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

8. माता पार्वती सहित नृत्य करते हुए, हजारों भुजाओं वाली भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य जीवन के सभी सुखों का लाभ लेता है।

9. चार हाथों और तीन नेत्रों वाली, गले में सांप और हाथ में कपाल धारण किए हुए, भगवान शिव की सफेद रंग की मूर्ति की पूजा करने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

10. काले रंग की, लाल रंग के तीन नेत्रों वाली, चंद्रमा को गले में आभूषण की तरह धारण किए हुए, हाथ में गदा और कपाल लिए हुए शिव मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य की सभी परेशानियों खत्म हो जाती है। रुके हुए काम पूरे हो जाते है।

11. ध्यान की स्थिति में बैठे हुए, शरीर पर भस्म लगाए हुए भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करने से मनुष्य के सभी दोषों का नाश होता है।

12. दैत्य जलंधर का विनाश करते हुए, सुदर्शन चक्र धारण किए भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करने से शत्रुओं का भय खत्म होता है।

13. जटा में गंगा और सिर पर चंद्रमा को धारण किए हुए, बाएं ओर गोद में माता पार्वती को बैठाए हुए और पुत्र कार्तिकेय और गणेश के साथ स्थित भगवान शिव की ऐसी मूर्ति की पूजा करने से घर-परिवार के झगड़े खत्म होते है और घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है।

14. हाथ में धनुष-बाण लिए हुए, रथ पर बैठे हुए भगवान शिव की पूजा करने से मनुष्य को जाने-अनजाने किए गए पापों से मुक्ति मिलती है।

15. जिस मूर्ति में भगवान शिव दैत्य निकुंभ की पीठ पर बैठे हुए, दाएं पैर को उसकी पीठ पर रखे और जिनके बाईं ओर पार्वती हों। ऐसी मूर्ति की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलती है।

Bhakti Marg

तीन बातें भक्त के जीवन में जरूर होनी चाहिएं 

प्रतीक्षा, परीक्षा और समीक्षा

भक्ति के मार्ग में प्रतीक्षा बहुत आवश्यक है। प्रभु जरूर आयेंगे , कृपा करेंगे , ऐसा विश्वास रखते हुए प्रतीक्षा करें। बहुत बड़ी प्रतीक्षा के बाद शबरी की कुटिया में प्रभु आये थे।
  परीक्षा- संसार की परीक्षा करते रहें। इस संसार में सब अपने कारणों से जी रहे हैं। किसी के भी महत्वाकांक्षा के मार्ग पर बाधा बनोगे वही तुम्हारा अपना,पराया हो जायेगा। संसार का तो प्रेम भी छलावा है। संसार को जितना जल्दी समझ लो तो अच्छा है ताकि प्रभु के मार्ग पर तुम जल्दी आगे बढ़ो।
          समीक्षा--अपनी समीक्षा रोज करते रहो, आत्मचिन्तन करो। जीवन उत्सव कैसे बने ? प्रत्येक क्षण उल्लासमय कैसे बने ? जीवन संगीत कैसे बने, यह चिन्तन जरूर करना। कुछ छोड़ना पड़े तो छोड़ने की हिम्मत करना और कुछ पकड़ना पड़े तो पकड़ने की हिम्मत रखना। अपनी समीक्षा से ही आगे के रास्ते दिखेंगे।

what is imortlity briefly mentioned

यह विराट विश्व ही मेरी देह हैं। देखो, कैसी इसकी अविकल परम्परा है। सारे मन मेरे मन हैं। सबके पैरों से मै ही चलता हूं । सबके मुंह से मैं ही बोलता हूं । सबके शरीर में मेरा ही निवास है।मैं इसका अनुभव क्यों नहीं कर पाता हूं ? इसका कारण है वही व्यक्तित्व भाव,वही,शूकरपना। इस मन से तुम आबद्ध हो चुके हो और तुम यहीं रह सकते हो, वहां नहीं। अमरत्व है क्या ? कितने कम लोग यह उत्तर देंगे कि 'वह हमारा यह जीवन ही है ! बहुतेरों की धारणा है कि यह जीवन मरणशील है, प्राणहीन है - ईश्वर यहाँ नहीं है, स्वर्ग पहुंचने पर ही वे अमर होंगे। उनकी कल्पना है कि मृत्यु के बाद ही ईश्वर से उनका साक्षात्कार होगा। लेकिन, यदि वे इसी जीवन में और सभी उसका साक्षात्कार नहीं करते, तो मरने के बाद भी उसे नहीं देख पायेंगे । यद्यपि अमरता पर उनकी आस्था है, तो भी उन्हें यह अज्ञात है कि अमरता मरने और स्वर्ग जाने से नहीं।🌷 स्वामी विवेकानन्द🌷

Thursday, May 28, 2020

The Unforgettable Lord "Hanuman"

महायुद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुंब सहित नष्ट हो चुका था। कौशलाधीश राम के नेतृत्व में चहुँओर शांति थी। 

श्री राम का राज्याभिषेक हुआ। राजा राम ने सभी वानर और राक्षस मित्रों को ससम्मान विदा किया। अंगद को विदा करते समय राम रो पड़े थे। हनुमान को विदा करने की शक्ति तो श्रीराम में भी नहीं थी। माता सीता भी उन्हें पुत्रवत मानती थीं। हनुमान अयोध्या में ही रह गए। 

राम दिन भर दरबार में, शासन व्यवस्था में व्यस्त रहे। सन्ध्या जब शासकीय कार्यों से छूट मिली तो गुरु और माताओं का कुशलक्षेम पूछने अपने कक्ष में आए। हनुमान उनके पीछे-पीछे ही थे। राम के निजी कक्ष में उनके सारे अनुज अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उपस्थित थे। 

वनवास, युद्ध, और फिर अनंत औपचारिकताओं के पश्चात यह प्रथम अवसर था जब पूरा परिवार एक साथ उपस्थित था। राम, सीता और लक्ष्मण को तो नहीं, कदाचित अन्य वधुओं को एक बाहरी, अर्थात हनुमान का वहाँ होना अनुचित प्रतीत हो रहा था। 

चूंकि शत्रुघ्न सबसे छोटे थे, अतः वे ही अपनी भाभियों और अपनी पत्नी की इच्छापूर्ति हेतु संकेतों में ही हनुमान को कक्ष से जाने के लिए कह रहे थे। पर आश्चर्य की बात कि हनुमान जैसा ज्ञाता भी यह मामूली संकेत समझने में असमर्थ हो रहा था। 

अस्तु, उनकी उपस्थिति में ही बहुत देर तक सारे परिवार ने जी भर कर बातें की। फिर भरत को ध्यान आया कि भैया-भाभी को भी एकांत मिलना चाहिए। उर्मिला को देख उनके मन में हूक उठती थी। इस पतिव्रता को भी अपने पति का सानिध्य चाहिए। 

अतः उन्होंने राम से आज्ञा ली, और सबको जाकर विश्राम करने की सलाह दी। सब उठे और राम-जानकी का चरणस्पर्श कर जाने को हुए। परन्तु हनुमान वहीं बैठे रहे। उन्हें देख अन्य सभी उनके उठने की प्रतीक्षा करने लगे कि सब साथ ही निकले बाहर। 

राम ने मुस्कुराते हुए हनुमान से कहा, "क्यों वीर, तुम भी जाओ। तनिक विश्राम कर लो।"

हनुमान बोले, "प्रभु, आप सम्मुख हैं, इससे अधिक विश्रामदायक भला कुछ हो सकता है? मैं तो आपको छोड़कर नहीं जाने वाला।"

शत्रुघ्न तनिक क्रोध से बोले, "परन्तु भैया को विश्राम की आवश्यकता है कपीश्वर! उन्हें एकांत चाहिए।"

"हाँ तो मैं कौन सा प्रभु के विश्राम में बाधा डालता हूँ। मैं तो यहाँ पैताने बैठा हूँ।"

"आपने कदाचित सुना नहीं। भैया को एकांत की आवश्यकता है।"

"पर माता सीता तो यहीं हैं। वे भी तो नहीं जा रही। फिर मुझे ही क्यों निकालना चाहते हैं आप?"

"भाभी को भैया के एकांत में भी साथ रहने का अधिकार प्राप्त है। क्या उनके माथे पर आपको सिंदूर नहीं दिखता?

हनुमान आश्चर्यचकित रह गए। प्रभु श्रीराम से बोले, "प्रभु, क्या यह सिंदूर लगाने से किसी को आपके निकट रहने का अधिकार प्राप्त हो जाता है?"

राम मुस्कुराते हुए बोले, "अवश्य। यह तो सनातन प्रथा है हनुमान।"

यह सुन हनुमान तनिक मायूस होते हुए उठे और राम-जानकी को प्रणाम कर बाहर चले गए। 
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प्रातः राजा राम का दरबार लगा था। साधारण औपचारिक कार्य हो रहे थे कि नगर के प्रतिष्ठित व्यापारी न्याय मांगते दरबार में उपस्थित हुए। ज्ञात हुआ कि पूरी अयोध्या में रात भर व्यापारियों के भंडारों को तोड़-तोड़ कर हनुमान उत्पात मचाते रहे थे। राम ने यह सब सुना और सैनिकों को आदेश दिया कि हुनमान को राजसभा में उपस्थित किया जाए। 

रामाज्ञा का पालन करने सैनिक अभी निकले भी नहीं थे कि केसरिया रंग में रंगे-पुते हनुमान अपनी चौड़ी मुस्कान और हाथी जैसी मस्त चाल से चलते हुए सभा में उपस्थित हुए। उनका पूरा शरीर सिंदूर से पटा हुआ था। एक-एक पग धरने पर उनके शरीर से एक-एक सेर सिंदूर भूमि पर गिर जाता। उनकी चाल के साथ पीछे की ओर वायु के साथ सिंदूर उड़ता रहता। 

राम के निकट आकर उन्होंने प्रणाम किया। अभी तक सन्न होकर देखती सभा, एकाएक जोर से हँसने लगी। अंततः बंदर ने बंदरों वाला ही काम किया। अपनी हँसी रोकते हुए सौमित्र लक्ष्मण बोले, "यह क्या किया कपिश्रेष्ठ? यह सिंदूर से स्नान क्यों? क्या यह आप वानरों की कोई प्रथा है?"

हनुमान प्रफुल्लित स्वर में बोले, "अरे नहीं भैया। यह तो आर्यों की प्रथा है। मुझे कल ही पता चला कि अगर एक चुटकी सिंदूर लगा लो तो प्रभु राम के निकट रहने का अधिकार मिल जाता है। तो मैंने सारी अयोध्या का सिंदूर लगा लिया। क्यों प्रभु, अब तो कोई मुझे आपसे दूर नहीं कर पाएगा न?"

सारी सभा हँस रही थी। और भरत हाथ जोड़े अश्रु बहा रहे थे। यह देख शत्रुघ्न बोले, "भैया, सब हँस रहे हैं और आप रो रहे हैं? क्या हुआ?" 

भरत स्वयं को सम्भालते हुए बोले, अनुज, तुम देख नहीं रहे! वानरों का एक श्रेष्ठ नेता, वानरराज का सबसे विद्वान मंत्री, कदाचित सम्पूर्ण मानवजाति का सर्वश्रेष्ठ वीर, सभी सिद्धियों, सभी निधियों का स्वामी, वेद पारंगत, शास्त्र मर्मज्ञ यह कपिश्रेष्ठ अपना सारा गर्व, सारा ज्ञान भूल कैसे रामभक्ति में लीन है। 

राम की निकटता प्राप्त करने की कैसी उत्कंठ इच्छा, जो यह स्वयं को भूल चुका है। ऐसी भक्ति का वरदान कदाचित ब्रह्मा भी किसी को न दे पाएं। मुझ भरत को राम का अनुज मान भले कोई याद कर ले, पर इस भक्त शिरोमणि हनुमान को संसार कभी भूल नहीं पाएगा। हनुमान को बारम्बार प्रणाम।
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🚩🙏जय श्री राम जय श्री हनुमान🙏🚩
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